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मुहब्बत की निशानी कहे जाने वाले विश्व के सात अजूबों में से एक ताजमहल को लेकर इन दिनों देश की राजनीति खूब गर्मायी हुई है। राजनीतिक गलियारों से लेकर इतिहासकारों तक के बीच में ताजमहल के निर्माण को लेकर खासा विवाद छिड़ा हुआ है। बावजूद इसके, तमाम दावों और विवादों के बीच कभी किसी ने उन ऐतिहासिक दस्तावेजों को देखने की कोशिश नहीं की जिनसे ताजमहल के निर्माण और उस वक्त के हालात से पर्दा उठ सके। यह तो तमाम लोग जानते है कि शाहजहां ने आगरा में ताजमहल का निर्माण यमुना किनारे बनी आमेर (जयपुर) के राजा जयसिंह की आलीशान ‘मान हवेली’ को तोड़कर किया था। इस हवेली का निर्माण राजा जयसिंह के दादा मान सिंह ने करवाया था। वह अकबर के सेनापति थे, लेकिन यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि मुगल बादशाह के इस फैसले से राजा जयसिंह खुश नहीं थे।इस खबर को पढ़ने के बाद हेलमेट लगाए बिना घर से बाहर नहीं निकल सकेंगे आप
शाहजहां से फैसले से खुश नहीं थे जयसिंह डॉ. शहंशाह कहते हैं कि तमाम फरमानों से साफ होता है कि मुगल शंहशाह शाहजहां और आमेर के राजा जयसिंह के बीच कभी भी अच्छे संबंध नहीं रहे थे। आलम यह था कि राजा जयसिंह शाहजहां के साथ रहना तो दूर उनके दरबार में हाजिर होना तक पसंद नहीं करते थे। इसलिए वह कई बार बुलाने के बावजूद शाहजहां के दरबार तक में नहीं जाते और जब ज्यादा जरूरी हो जाता तो कभी अपने बेटे रामसिंह तो कभी अपने दरबारियों को भेज देते थे। मान हवेली छिनने के बाद मुगल बादशाह से उसकी तल्खियां और बढ़ गई थीं। शाहजहां को भी इस बात का एहसास हुआ और इन तल्खियों को दूर करने के लिए ताजमहल का निर्माण कार्य शुरू होने के पूरे एक साल बाद 18 दिसंबर 1633 में शाही फरमान जारी कर राजा जयसिंह को मान हवेली के बदले राजा भगवान दास की हवेली, माधो सिंह की हवेली और रूप सिंह की हवेलियां सौंपी थी।
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जयसिंह ने रुकवाना चाहा था ताजमहल का निर्माण डॉ. शहंशाह बताते हैं कि मुगल बादशाह शाहजहां की ओर से राजा जयसिंह को जारी किए गए फरमानों से सबसे बड़ा चौंकाने वाला खुलासा यह होता है कि राजा जयसिंह ने ताजमहल का निर्माण कार्य रुकवाने की भी कोशिश की थी। 21 जून 1637 को जयसिंह के लिए शाहजहां की ओर से जारी किए गए फरमान से पता चलता है कि जयसिंह के लोगों ने संगमरमर की खुदाई में लगे मजदूरों और संतराशों को खदानों में जाने से रोक दिया था। जिससे पत्थर निकालने का काम लगभग रुक गया था। मुगल बादशाह शाहजहां को जब इस बात की जानकारी हुई तो वह खासा नाराज हुआ था। फारसी में जारी इस फरमान में शाहजहां ने लिखा है कि ‘आपके (राजा जयसिंह) के आदमी उस तरफ की सीमाओं के पत्थर काटने वालों को आमेर और राजनगर में एकत्र कर रहे हैं। इस कारण पत्थर काटने वाले मकराना (नागौर) कम पहुंच रहे हैं। अतः वहां पर कार्य बहुत कम ही होता है। इसलिए हम आदेश देते हैं कि आप अपने व्यक्तियों को निर्देश दें कि वे आमेर और राजनगर में पत्थर काटने वालों को बिल्कुल भी ना रोकें और जितने भी संगतराश वहां पहुंचे उनको मकराना के अधिकारियों के पास भेज दें। आप इस विषय में पूरी ताकीद जानकर किसी भी हाल में आदेशों की अवहेलना ना करें। इसे अपना उत्तरदायित्व समझें।